"छोटा भाई बना... बड़े भाई का दुश्मन" (एक सच्ची, मार्मिक पारिवारिक कहानी)
💔 "कभी-कभी ज़िंदगी वो ज़ख्म देती है जो दिखते नहीं... लेकिन रूह तक चीर जाते हैं..."
रिश्तों की असली परख तब होती है, जब कोई अपने स्वार्थ के लिए उसी हाथ को काटने लगे जो उसे कभी उठाकर चलाया करता था।
आज की कहानी, एक ऐसे बड़े भाई की है जिसने अपनी हर ख्वाहिश कुर्बान की… लेकिन समय के साथ वही छोटा भाई उसका सबसे बड़ा सवाल बन गया।
यह कहानी सिर्फ दो भाइयों की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो रिश्तों को खून से नहीं, कद्र से निभाता है।
कभी एक गाँव में दो भाई रहते थे — अजय और निलेश।
अजय बड़ा था। ज़िम्मेदार था। एक सपना देखा था — कि उसका छोटा भाई निलेश, एक दिन ऊँचाई पर पहुँचे।
अपने हर सपने को मारकर उसने निलेश के लिए रास्ता बनाया।
स्कूल की फ़ीस
कॉलेज की किताबें
इंटरव्यू के कपड़े
पहली नौकरी के लिए किराया
सब कुछ अजय ने किया।
उसने शादी नहीं की, ताकि निलेश को आगे बढ़ने में कोई रुकावट न आए।
लेकिन समय ने करवट बदली।
वो निलेश, जो कभी भैया... भैया कहते नहीं थकता था,
अब अजय को एक बोझ समझने लगा।
अब न उसमें वो सम्मान था,
न अपनापन,
न ज़रा सा एहसान का भाव।
निलेश कहता था —
"भैया ने मेरे लिए किया ही क्या है? मुझे तो खुद मेहनत से सब मिला!"
और अजय...?
वो चुप रहता।
माँ की बीमारी आई, तो वही अस्पताल भागा।
बापू का अंतिम संस्कार, तो वही कंधा बना।
लेकिन आज...
निलेश ने ज़मीन के कागजों से अजय का नाम ही काट दिया।
एक दस्तखत में, एक रिश्ता मिटा दिया।
अजय ने कुछ नहीं कहा।
एक पुरानी डायरी निकाली।
जिसमें निलेश की पहली फ़ीस की रसीद चिपकी थी।
नीचे लिखा था —
"मेरा सपना है... अपने छोटे भाई को उड़ते देखना। चाहे जैसे भी हालात हों।"
शायद उसी दिन अजय ने आखिरी बार आंसू बहाए थे।
आज...
निलेश एक बड़ा अफ़सर है।
गाड़ी है, बंगला है, रुतबा है...
लेकिन बड़ा भाई नहीं है।
पर उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि वह तो अब एक स्वार्थ की दुनिया में चला जाता है
इधर बड़ा भाई अजय अब भी अपने छोटा भाई को भूल नहीं पाता है,
और वो अब गाँव के स्कूल में गरीब बच्चों को पढ़ाता है...
ओ शायद इसलिए, की....
किसी और निलेश को... उसका अपना अजय याद रहे।
इस कहानी का ....
💡 भावनात्मक संदेश (Message): यह है कि,
❝रिश्ते खून से नहीं... कद्र से टिकते हैं।
और जब कद्र मिट जाती है...
तो सगा भाई भी पराया हो जाता है।❞
आज अजय के पास कुछ नहीं है,
सिवाय यादों के, त्याग की कहानियों के... और एक मुस्कान,
जो वो बच्चों को पढ़ाते हुए हर रोज़ पाता है।
💔 "जिसके लिए सब कुछ छोड़ा...
उसी ने सबसे पहले उसे छोड़ दिया।"
अगर ये कहानी आपके दिल को छू गई हो...
तो इसे जरूर शेयर कीजिए।
शायद कोई और निलेश, समय रहते संभल जाए...
या कोई अजय, अकेला न महसूस करे।
मिलते हैं एक नई कहानी और एक नए संदेश के साथ।
तब तक के लिए —
नमस्कार।
जय हिंद, जय भारत 🇮🇳
Script Writer
Avadhesh Kumar Saini

Khubsurat kahani👌👍❤️💯
जवाब देंहटाएंaaj ke jamane mein yahi sab Ho Raha Hai