गरीबी में घुटती ज़िंदगी 2025 का भारत|#kalamVerse #poetry

                                     





                                      
2025 का भारत – जहाँ एक ओर तकनीक और विकास की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी, मजदूर और गरीब की जिंदगी और भी कठिन होती जा रही है। यह कविता उसी पीड़ा और हकीकत को बयां करती है।


                                        कविता



  • रोटी के दाम अब आसमान से बातें करते हैं,  
  • और सियासतदान मंचों से बस वादे करते हैं।  

  • जिसे कल भूखा देखा था, वो आज भी लाइन में है,  
  • 2025 आने के बाद भी , 
  • वही लोटा, वही गलास, सब खाली  हैं, 

  • मजदूर की हथेली पर बस छाले बचे हैं,  
  • न रोजगार, न उम्मीद, सिर्फ़ ताले बचे हैं।  
  • बेटे की फीस और माँ की दवा,  
  • महंगाई ने सब कुछ धीरे धीरे ऐसा लूटा।

  • पेट की आग जब सवाल बन जाए,  
  • तो वोट की कीमत भी हलाल बन जाए।  
  • राजनीति अब व्यापार बन गई है,  
  • आदमी यहाँ केवल अख़बार बन गई है।

  • एक बच्चा भूखा सोया कल रात,  
  • क्योंकि उसके बाप की मज़दूरी बाकी रह गई है।
  • ना नेता आया, ना योजना चली,  
  • बस न्यूज में थी, एक और कहानी जली।

  • जलते तो हैं सिर्फ गरीब इंसान, 
  • अमीरों का तो सिर्फ हवा चली,

  •  जो भी चुप रह गया आज, वो कल को गूंगे कहलाएगा,  
  • नेतो की तो, आदत बन गई, हर साल नौकरी दिलायेगा 

 

  • 2025 की ये कविता नहीं, आज सत्य की ये हकीकत है, 
  • बेरोजगारी देश से खत्म करो, सिर्फ और सर्फ आज उसी की  सबसे शख्त जरूरत है।

 

✍️ यह कविता प्रस्तुत है *Kalam Verse Hindi* ब्लॉग द्वारा, जो समर्पित है समाज के अनकहे पहलुओं को आवाज़ देने के लिए। यदि आपको कविता पसंद आए, तो ब्लॉग को Follow करें और Google पर "Kalam Verse Hindi" सर्च करें।



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