रिक्शावाले की बेटी बनी IAS अधिकारी | Inspirational Hindi Story badala lungi AIS adhikari mahila

  




“रिक्शेवाले की बेटी IAS अफसर”

“कभी किसी गरीब को उसकी गरीबी पर मत आँकना…

क्योंकि किस्मत का खेल इतना बड़ा होता है कि जिसको तुम आज धक्का दे रहे हो,

कल वही तुम्हारे फैसले करेगा।”

आज की कहानी है एक रिक्शेवाले और उसकी बेटी की…

एक ऐसी बेटी की, जिसने अपने पिता का टूटा हुआ रिक्शा देख-देखकर

अपनी ज़िंदगी का ऐसा पहिया घुमाया…

कि पूरा जिला हिल गया।

शहर की भीड़भाड़ वाली सड़क…

रिक्शेवाला रघुबीर अपने पसीने से लथपथ रिक्शा खींच रहा है।

सामने से एक बड़ा अफसर आता है।

वो रिक्शे को रोकता है और गुस्से में चिल्लाता है –


“सड़क जाम करते हो, निकम्मों की औलाद! तुम्हारे जैसे लोग इसी लायक हैं।”


वो रिक्शे को लात मारकर पलट देता है।

भीड़ हँसती है।

और रघुबीर की बेटी, सावित्री, ये सब अपनी छोटी आँखों से देख रही होती है।

उसके चेहरे पर आँसू नहीं… बस एक खामोश आग जल उठती है।


सावित्री पढ़ाई में होशियार थी।

लेकिन पैसे? किताबें? फीस?

कुछ नहीं था।


वो दिन में पढ़ाई करती, रात को पिता के साथ रिक्शा खींचने निकल जाती।

लोग ताने मारते –

👉 “अरे, रिक्शेवाले की बेटी IAS बनेगी? हा हा हा…”

पर सावित्री ने ठान लिया –

“जिस दिन बाबूजी का सिर ऊँचा करूँगी, उसी दिन दुनिया को जवाब दूँगी।”


एक दिन वही अफसर फिर सड़क पर रघुबीर को सबके सामने धक्का देता है और कहता है –

👉 “तुम्हारे जैसे लोग कभी अफसर नहीं बन सकते। ये कुर्सियाँ बड़े घरों के लिए बनी हैं।”


उस रात सावित्री ने किताबें खोलते हुए अपने पिता से कहा –

“बाबूजी, ये कुर्सी भी मेरी होगी… और ये लोग झुकेंगे भी।”


सावित्री ने रात-रात भर पढ़ाई की।


कई बार एग्ज़ाम में फेल हुई।


कई बार खाना छोड़कर सिर्फ़ चाय और बासी रोटी पर दिन काटे।


कई बार सोचा छोड़ दूँ… पर फिर पिता का अपमान याद आता और आग फिर से जल उठती।


कुछ साल बाद –

सावित्री का नाम UPSC रिज़ल्ट में सबसे ऊपर आता है।

“सावित्री रघुबीर यादव – IAS OFFICER”


पूरा शहर दंग रह जाता है।


कुछ महीनों बाद वही शहर, वही सड़क…

लेकिन इस बार सावित्री एक सफेद गाड़ी से उतरती है।

उसके सीने पर IAS का बैज चमक रहा है।

भीड़ इकट्ठा है।


वो अफसर भी वहीं खड़ा होता है जिसने कभी रिक्शे को लात मारी थी।

सावित्री उसके सामने खड़ी होकर मुस्कुराती है और कहती है 


👉 “याद है? यही सड़क थी… यही रिक्शा था… और यही अपमान था।

आज रिक्शा वही है, बाबूजी वही हैं…

बस बेटी बदल गई है।”


वो भीड़ की ओर मुड़कर कहती है –

👉 “गरीब का मज़ाक उड़ाना आसान है…

लेकिन गरीब के सपनों को तोड़ना नामुमकिन है।”


पूरा मैदान तालियों से गूँज उठता है।

रघुबीर की आँखों से आँसू गिरते हैं,

लेकिन इस बार ये आँसू हार के नहीं…

गर्व के हैं।


 हमारा अंतिम संदेश यही है संदेश


“गरीबी कभी भी इंसान की उड़ान को रोक नहीं सकती।

अगर मेहनत और इरादे

 सच्चे हों,

तो रिक्शेवाले की बेटी भी IAS बनकर

पूरे शहर का भविष्य तय कर सकती है।”


🧠 लेखक की पहचान:

✅ SWA Registered Scriptwriter — Registration No. 20441

✅ AI-Cinematic Storytelling Expert

✅ Facebook & YouTube Creator (Entertainment Category)

✅ Original, Unique & Deeply Emotional Content Creator 


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