कचरा बीनने वाली की बेटी बनी ISRO की वैज्ञानिक | Inspiring Story of scientists
कचरा बीनने वाली की बेटी ISRO की वैज्ञानिक बनी ...
कभी-कभी ज़िंदगी इंसान को तोड़ देती है, लेकिन वही ज़िंदगी इंसान को इतना मज़बूत भी बना देती है कि पूरा समाज उसके आगे झुक जाए। यह है राधा की कहानी — एक झुग्गी से निकलकर सितारों तक पहुँचने वाली लड़की की…
“कभी-कभी ज़िंदगी इतनी बेरहम होती है कि इंसान टूट जाता है… लेकिन कभी-कभी वही ज़िंदगी इंसान को इतना मज़बूत बना देती है कि पूरा समाज उसके आगे झुक जाता है। यह कहानी है… राधा की। एक ऐसी लड़की… जिसने कचरे के ढेर से अपना सफर शुरू किया और विज्ञान की ऊँचाइयों तक पहुँचकर दुनिया को हैरान कर दिया।”
राधा का बचपन… पटना के झुग्गी-झोपड़ी इलाक़े में बीता।
सुबह होते ही उसकी माँ शहर की गलियों में कचरा बीनने निकल जाती थी। राधा भी साथ जाती। नन्हें हाथों में टूटी टोकरी, और बदबूदार कूड़े के ढेर। लोग देखते और हँसते
“अरे देखो… ये कचरे वाली की बेटी है।”
“इसका काम तो सिर्फ गंदगी में है, पढ़ाई-लिखाई इसके बस की नहीं।”
राधा सुनती, लेकिन चुप रहती। आँखों में आँसू होते, मगर वो सिर झुका कर माँ का हाथ पकड़ लेती।
फिर उसके जीवन मेंआया।
संघर्ष – भूख, अपमान और सपना उसके
घर में कभी-कभी खाने को एक वक़्त की रोटी भी नहीं होती। बरसात में झोपड़ी टपकती। ठंड में फटे कपड़े।
राधा स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन किताबें कहाँ से लाए?
कभी-कभी कचरे से पुरानी फटी-कटी किताब मिल जाती… वही उसका खज़ाना बन जाती।
रात को झोपड़ी में दीये की हल्की रोशनी में वो वही किताबें पढ़ती।
उसकी आँखों में सपना था – “मैं कचरे में नहीं रहूँगी… मैं कुछ बनकर दिखाऊँगी।”
लेकिन मोहल्ले वाले हँसते:
“पढ़ लिख कर क्या करेगी? तू तो अपनी माँ की तरह तू भी सिर्फ कचरा ही बीनेंगी।”
राधा किसी की बातों का जवाब न देकर बस चुपचाप अपने आँसू पोंछ लेती और दिल में आग भर लेती।
एक दिन राधा मोहल्ले की गली में बिखरे अखबार बीन रही थी। वहाँ से एक स्कूल का मास्टर जी गुज़र रहा था। उन्होंने देखा—
एक गंदी सी झोपड़ी की बच्ची अंग्रेज़ी का अ अखबार पढ़ने की कोशिश कर रही है।
मास्टर जी रुक गए। पूछा:
“बेटी, पढ़ना चाहती हो?”
राधा ने आँखों में चमक के साथ कहा:
“हाँ, गुरुजी… मैं बहुत पढ़ना चाहती हूँ।”
बस, वहीं से उसकी ज़िंदगी पलट गई।
मास्टर जी ने उसे मुफ्त में पढ़ाना शुरू कर दिया, और उसे एक दिन स्कूल में दाख़िला दिलवा दिया।
राधा को स्कूल में भी ताने सुनने पड़े।
“अरे ये तो कचरे वाली है…”
कभी लड़कियाँ बेंच से धक्का दे देतीं।
कभी लड़के कह देते—
“तेरे जैसे लोग सिर्फ झाड़ू लगाने के काम आते हैं।”
राधा रोती, लेकिन हारती नहीं।
वो सोचती – “आज मैं चुप हूँ… लेकिन एक दिन मेरा नाम पूरी दुनिया लेगी।”
राधा पढ़ाई में इतनी तेज़ निकली कि जिला स्तर की साइंस प्रतियोगिता जीत ली।
लोग हैरान थे – “ये वही कचरे वाली राधा है
कुछ समय ऐसे ही समय बितते जाता है, और राधा की
सालों की मेहनत, नींद रहित रातें, भूख और तानों के बीच…आखिरकार
राधा ने 12वीं में टॉप कर ही लिया, उसे
उसके बाद स्कॉलरशिप मिली।
और फिर उसने IIT में दाख़िला पा लिया।
वहाँ भी मुश्किलें थीं—पैसे नहीं, किताबें महँगी, हॉस्टल का खर्च।
लेकिन राधा ने हार नहीं मानी। और अपना पढ़ाई जारी रखी....
आज… राधा ISRO की वैज्ञानिक है।
जिस मोहल्ले में लोग उसे “कचरे वाली” कहकर चिढ़ाते थे, आज वही लोग उसके पोस्टर दीवारों पर चिपकाते हैं।
जब वो गाँव आई, पूरा इलाक़ा फूल बरसा रहा था।
लोगों की आँखों में आँसू थे, मगर अब गर्व के आँसू थे,
राधा की तरह…
जिसे कभी लोग ‘कचरे वाली’ कहते थे, आज दुनिया उसे ‘वैज्ञानिक’ कहती है।
तो याद रखना—
किसी का मज़ाक मत उड़ाओ, क्योंकि ताने खाने वाले अक्सर वही होते हैं… जो इतिहास लिखते हैं।”

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